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Tuesday 13 December 2011

SUN DAUGHTER SAVITRI''S VISION

यह धरती गोल-गोल क्यों घूम रही है? कभी आपने यह सोचा है ? हमने अंतरिक्ष की बहती नदी में छलांग लगाकर यह देखा है कि हमारे प्यारे अंतरिक्ष में घूमते हुए सभी ग्रह ठीक उसी प्रकार के भंवर हैं -जैसे भंवर हमारी धरती की तेज बहती नदियों में आते हैं..
                            ये भंवर इसलिए आते हैं ..क्योंकि अंतरिक्ष में हो रहे महाप्रवाह के मध्य एक केन्द्रीय प्रवाह भी है ..जोकि उस महाप्रवाह के सामानांतर पर अंदर ही अंदर बहता रहता है ..इस केन्द्रीय प्रवाह का स्वभाव है कि प्रत्येक अवस्था को अपने साथ आगे ले जाने के लिए तैयार करना .. राजी करना .
                             सो यह केन्द्रीय प्रवाह कुछेक MOMENT अंतरिक्ष  की उस सुप्त स्थति और अवस्था में ठिठक कर रुक जाता है . इस कारण महाप्रवाह का गुरुत्वाकर्षण उस स्थति और अवस्था में एक वर्तुलगति पैदा कर देता है ..परिणामस्वरुप या तो नए ग्रहों का निर्माण होता है ..या फिर किसी नए BLACKHOLE का जन्म होता है ..
                              आपको मैं यह भी बताता चलूँ कि अंतरिक्ष में स्थित सभी ब्लैकहोल्स ही अंतरिक्ष के महाफैलाव में बिखरे ग्रहों ,नक्षत्रों ,निहारिकाओं ,चन्द्रमंडलों ,और सौरमंडलों के आदि बीज हैं ..
                              इस लिए इस तथ्य को आप जान लें कि जहाँ भी गति वर्तुल है ..वहां -वहां अंतरिक्ष का केन्द्रीय महाप्रवाह सक्रिय है ..और नए अंतरिक्ष का उत्खनन वहां चल रहा है ..और इसके परिणामस्वरूप हमको अंतरिक्ष की पौषक पहन कर धरती से बातचीत करनी पड़ती है ..आज मेरी धर्मपत्नी का जन्म दिवस है ..सो आप सभी विश्वनिवासियों का आशीर्वाद चाहता हूँ ...
                                       
                                              -- रविदत्त मोहता ,भारत  
                            

Sunday 11 December 2011

DEATH AND SUPERMAN

       मैं माफी चाहता हूँ कि इन दिनों कुछ व्यस्त रहा . सो आपसे मुलाकात नहीं कर सका . THE GREAT WAIT OF SUPERMAN ..पुस्तक की POST कुछेक दिनों बाद आरंभ कर दूंगा ..पर आज आपसे कुछ ओर कहना चाहता हूँ .
        मृत्यु इस धरती का डरावना सत्य है . मृय्यु से मुक्ति सभी की इच्छा है . इस पर हमारे प्राचीन ऋषियों ने बहुत काम किया है .पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिक भी इस पर बहुत काम कर रहें हैं . लेकिन मृत्यु पर विजय असंभव है . कारण इतना ही है कि यह एक मानसिक बीमारी है ...जो मानव की समझ तक ही सिमित है . अतिमानव मूलतः अपनी आत्मा के अनुभव से जन्म लेगा . अतः उसके लिए शरीर इतनी ही अहमियत रखेगा -जितनी की हमारे लिए कोई पेंट  या पायजामा रखता है . . अब क्या कभी आपने सुना है कि किसी मकान की मृत्यु हो गयी ?
         किसी 'गिलास' की मृत्यु हो गयी ?
         चाय के कप की मृत्यु हो गयी ?
         या घर के दरवाजे की मृत्यु हो गयी ?
          क्यों  नहीं सुना ...? क्यूंकि जिन चीजों के मैं नाम ले रहा हूँ ..वे पहले से ही मानव दिमाग द्वारा मृत मान ली गयी है .इस लिए इनकी मृत्यु पर धरती में न तो कोई विलाप है ..और न ही कोई संवाद है !
          पर महान यह शरीर चूँकि अजर और अमर ''आत्मा'' की पदार्थ रुपी पौशाक है ...इसलिए इस पर संवाद ही संवाद है .पार्थिव शरीर की धड़कन ने धरती पर यह अफवाह फैला दी है कि उसकी मृत्यु क्यों हो रही है ? 
          शरीर की शिकायत वाजिब है ...क्योंकि हमारा शरीर हमारे [ यानि हम आत्मा ] की अजरता और अमरता के साथ लगभग १०० वर्षों तक रहता है . इस कारण यह भी हमारी आत्मा की अमरता के स्वभाव में जीना चाहता है .
          मांग वाजिब है ..परन्तु इसके लिए मानव शरीर को यथा अग्नि , वायु , आकाश , जल और पृथ्वी जैसे पार्थिव तत्वों का अतिक्रमण करके ''आत्मतत्व'' के पराकाश में प्रवेश करना होगा ...परन्तु अभी तक इसके लिए यह शरीर तैयार नहीं है . यह अभी भी ''नारी शरीर'' में ही प्रवेश करने को २४ घंटें उत्तेजित रहता है .....
                                              -- रविदत्त मोहता , भारत                   

Sunday 4 December 2011

THE GREAT WAIT..

         क्या हम मानव इस धरती पर जला दिए और दफना दिए जाने के लिए आते है ?
          शान ने इस जला दिए जाने और दफना दिए जाने की मानव निर्मित क्रूर सामाजिक व्यवस्था से निपटने का मन बना लिया था .शान ने यह सोच लिया था कि वह जिस महान  अंतरिक्ष से उतरा है ..उसी विराट अंतरिक्ष के सत्य को धरती पर स्थापित करेगा ...चाहे जो कुछ हो जाये ..वह समझोता नहीं करेगा तो नहीं करेगा ..
           आप सभी दिल थामकर बैठ जाएँ .मैं एक ऐसे युवक की कहानी आपको सुनाने जा रहा हूँ ..जो पहली बार इस धरती की ओर आया है ..अंतरिक्ष की बियावान पर क्रूर अँधेरी आकाशगंगाओं की गलियों में सदियों भटकने के बाद जब वह पृथ्वी के सौरमंडल के पास से गुजर रहा था ..तो उसे हमारे सौरमंडल की सौरगलियों में अरबों-खरबों स्त्री ,पुरुषों ,बच्चों ,बूढों के भयानक रुदन का स्वर सुनाई दिया ..वह ठिठक कर रुक गया .
            अंतरिक्ष के अंतराल से उसने जब सौरमंडल की हमारी आकाशगंगा में झांक कर देखा तो दंग रह गया.पृथ्वी के चारों ओर अरबों-खरबों मनुष्यों के मरे हुए सूक्ष्म शरीर तैर रहें थे ..और उन सूक्ष्म शरीर के आवरण ''कारण शरीर'' बिलख-बिलख कर रो रहे थे .
             मैं आपको इस तथ्य से अवगत कराता  चलता हूँ कि हमारे स्थूल शरीर के नष्ट हो जाने बाद भी हमारा सूक्ष्म शरीर बना रहता है ..यह शरीर ठीक वैसा ही होता है -जैसा हमारा स्थूल शरीर होता है ..क्योंकि यह सूक्ष्म शरीर इतना हल्का होता है कि मानव कि मृत्यु के तुरंत बाद यह स्थूल शरीर से अलग हो जाता है ..और पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करके ..और इसका छेदन करके पृथ्वी के बाहर ''पृथ्वी कक्षा ''में पहुँच जाता है ..और फिर  पृथ्वी के भयंकर गुरुतवाकर्षण की वजह से पृथ्वी कक्षा का छेदन नहीं कर पाता..परिणामस्वरुप लाखों-करोड़ों वर्षों तक वहां असहाय तैरता रहता है ...
              इस महान अजर-अमर ''कारण शरीर'' के बारे में मैं आपकों बाद में बताऊंगा ..पहले इस ''शान'' की कहानी सुनो ...
              उसका नाम वास्तव में शानदार था .
              शान...                                                                                     [क्रमश....]                   

THE GREAT WAIT..

             मेरे सदगुरु स्वामी अवधेशानंद जी का मुझे एक कालजयी आदेश है कि मैं लगातार लिखता रहूँ ...इसी आदेश की अनुपालना में मैं आज से आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ -जो धरती की नहीं है .हमारे सौरमंडल की भी नहीं है .बल्कि सूदूर और सबसे प्राचीन अंतरिक्ष की छुपी हुई कहानी है ...इसे मैं समय -समय पर क्रमश; आपको सुनाता रहूँगा ...
             मैं आपसे यह भी अपेक्षा  करता हूँ कि आप धेर्यपूर्वक इसे पढेंगे ही नहीं ..बल्कि मेरे मुख से सुनेंगे भी ..
              तो कहानी इस प्रकार है ...
              क्या आपको नहीं लगता कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हम किसी की प्रतीक्षा करते हैं? इस तरफ हम ध्यान नहीं देकर संसार की माया में खुद को व्यस्त कर लेते हैं ...कि जिससे वह प्रतीक्षा न करनी पड़े ..जो कभी पूरी नहीं होती.....?
              कहने को इस धरती पर हम जिसकी भी प्रतीक्षा करते हैं ..वह पूरी हो जाती है . सुबह की करें तो ..सुबह हो जाती है . रात की करें तो ...रात हो जाती है .धन की करें तो तो थोड़ा ही सही पर मिल जाता है .स्त्री की करें तो ..पत्नी रूपा मिल ही जाती है .यानी ...कहने को हमारी सभी प्रतिक्षाएं पूरी हो जाती है .प्रतीक्षा करने वाली चीज हमारे ''जीवन भिक्षा पात्र ''में डाल दी जाती है ..लेकिन इस सबके बाद भी हमें अँधेरी रातों के सुनसान कमरों में क्यों किसी की प्रतीक्षा रहती है ?
               वो कौन है ..जिसको अभी आना बाकि है ..?
                वो कौन है ..क्या कोई स्त्री है ?
                 भाग्य है ...?
                  धन है ...?
                   या कोई ईश्वर है ?...तो इसे ही मैं महाप्रतीक्षा कहता हूँ .यह प्रतीक्षा जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव जीवन के बीहड़ शरीर पर दस्तक देती रहती है ...लेकिन मानव चाह कर भी उसकी इस दस्तक को सुन नहीं पता ..और किसी गाँव की सुनसान गली में ..खांसते-खांसते दम तोड़ देता है ..और लोग दोड़कर उसके घर पहुँचते है ..और ले जाकर जला देते है या दफ़न कर देते हैं ...          [क्रमश......]   
                 

Saturday 3 December 2011

PENDING INCIDENT...LOVE.

जब से यह धरती बनी है ..और अंतरिक्ष में आई है .तब से ही यहाँ एक महाघटना का घटित होना बाकी है .वह घटना है ...प्यार .कहने में तो विश्व के प्रत्येक छोर में हमने बहुत सारी सच्ही प्रेकथाएं पढ़ी है ...लेकिन इन सभी कथाओं का अंत ...मृत्यु ,विछोह ,नफरत या धोखेबाजी का एक धिक्कारा हुआ गीत ही बन कर रह गया है...
                   मेरा यह अटूट विश्वास है कि प्रेम रुपी महाघटना का धरती पर अभी भी घटित होना बाकी है .आदम,हव्वा से लेकर वर्तमान स्त्री -पुरुष के बीच का प्रेम मात्र एक साहित्यिक और शास्त्रीय परिसंवाद मात्र है ...क्योंकि प्रेम वह महाघटना है ,जिसके घटित होते ही अंतरिक्ष में घूमती यह धरती ''नर्त्यमुद्रा ''में आ जाएगी ..और इसका सूर्य के चारों और बेचेनी से चक्कर लगाने का दौर समाप्त हो जायगा .हाँ ..एक बात मैं कुछ नयी बताना चाहता हूँ ...आजकल धरती पर शुगर ,ब्लडप्रेसर जैसी बीमारियों का आम होना यही दर्शाता है कि अंतरिक्ष में हमारी धरती माँ बहुत बैचैन और निराश है ...
                    तो प्रेम क्या है ?
                     यह प्रश्न आपके दिमाग में अब जरूर उठ रहा होगा ..अभी तक के प्रेम को गीतकारों ,कवियों और ऋषि -मुनियों ने इन शब्दों में व्यक्त किया है कि स्त्री की ''आँखें''ही धरती का सबसे पवित्र ''प्रेमशास्त्र''होता है और पुरुष का ''ह्रदय'' इस प्रेमशास्त्र का पहला और अंतिम ''प्रेमशब्द''है .ऐसा सही भी है .लेकिन इस मिलन के परिणाम स्वरुप -साहित्य ,साम्राज्य ,संगीत और संतान का ही जन्म हुआ है .आत्मस्वर का एक 'गहरा श्वास' भी इसके परिणामस्वरुप घटित नहीं ही पाया है ...वरना ऐसा नहीं होता कि मुझे यह सबकुछ लिखना पड़ता ?
                    अब ऐसा क्यों नहीं हो पाया है ?
                     तो मेरा उत्तर है ..पहला कारण-जब कभी भी धरती पर ''वह'' युवक पैदा होगा ...तो उसकी आँखों और ह्रदय दोनों का स्वाभाव SPACE VALUE BASED...होगा .और जब कभी भी ''वो'' युवती पैदा होगी तो उसकी आँखें ,ह्रदय और शरीर..ये तीनों कमलपुष्प की गंध से महकते और दमकते हुए होंगें ...इन दोनों के मध्य कोई बात नहीं होगी ..बस थरथर्राते होंठों और डबडबायी आँखों से वे एक दुसरे को देखंगें ...और यह देख कर पूरी धरती महकता हुआ गुलाब का पुष्प हो जायगी ...
                     अभी धरती पर संवाद ,विवाद और विवाह का दौर चल रहा है ..
                      दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि एक ही काल में उन दोनों का जन्म लेना जरूरी है ..जो दुर्भाग्य से अभी तक हो नहीं पाया है .
                        आजकल धरती इसी ''महाप्रतीक्षा'' कि गंध से महक रही है .....
                                                                                       रविदत्त मोहता ,भारत