हर युग में हमारे शरीर का कोई एक अंग ही मुख्य रूप से सक्रिय होता है ...जैसे पाषाण युग में ''पैर'' ज्यादा सक्रिय थे ...राजतंत्रीय युगों में ''मुख'' ज्यादा सक्रिय था ..राजा द्वारा बोला गया शब्द ही तब का विधान और संविधान होता था ...भारतवर्ष के युगों की अगर मैं बात करूं तो यहाँ सतयुग में -''हर्दय''...त्रेता में -''कंठ''.. और द्वापर में -''कान''...तथा आज का कलयुग -जिसे पाश्चात्य जगत 'विज्ञानंयुग''...कहता है ...इसमें हमारे शरीर का सबसे सक्रिय अंग ''आँखें''...हैं.
तो इस वैज्ञानिक कलयुग में विज्ञानं का तो यह स्वभाव ही है कि वह आँखों देखी बात को ही सत्य मानता है ...कानों सुनी को नहीं...और मानव शरीर का सबसे वैज्ञानिक और अलोकिक अंग ''आँख''..ही तो है .मैं कहना यह चाह.. रहा हूँ कि वर्ष २०१२ से मानव शरीर के इस सबसे सुंदर अंग 'आंख' को बहुत सजग रहना चाहिए ...कारण इतना ही है कि यह जरूरी नहीं होता है कि जो दिखाई देता है ..वह सच होता है ..सत्य न तो केवल दिखाई देता है ..न ही केवल सुना जा सकता है ..सत्य केवल महसूस भी नहीं किया जा सकता है ..सत्य एक महाघटना है ...जो एक साथ किसी युग में उसी पल ''एक साथ ..सुनी ..देखी ..और कही ..'' जाती है .हमें अपनी आँखों को अब ...कान और मुख का अंगसंग देकर विराट और विशाल बनाना होगा ..प्रक्रति एक विराट सपना देख चुकी है ..उस महान दिव्य घटना को इन तीनों अंगों से एक साथ देखना ही मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होने वाला है ...
-रविदत्त मोहता ,भारत
तो इस वैज्ञानिक कलयुग में विज्ञानं का तो यह स्वभाव ही है कि वह आँखों देखी बात को ही सत्य मानता है ...कानों सुनी को नहीं...और मानव शरीर का सबसे वैज्ञानिक और अलोकिक अंग ''आँख''..ही तो है .मैं कहना यह चाह.. रहा हूँ कि वर्ष २०१२ से मानव शरीर के इस सबसे सुंदर अंग 'आंख' को बहुत सजग रहना चाहिए ...कारण इतना ही है कि यह जरूरी नहीं होता है कि जो दिखाई देता है ..वह सच होता है ..सत्य न तो केवल दिखाई देता है ..न ही केवल सुना जा सकता है ..सत्य केवल महसूस भी नहीं किया जा सकता है ..सत्य एक महाघटना है ...जो एक साथ किसी युग में उसी पल ''एक साथ ..सुनी ..देखी ..और कही ..'' जाती है .हमें अपनी आँखों को अब ...कान और मुख का अंगसंग देकर विराट और विशाल बनाना होगा ..प्रक्रति एक विराट सपना देख चुकी है ..उस महान दिव्य घटना को इन तीनों अंगों से एक साथ देखना ही मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य होने वाला है ...
-रविदत्त मोहता ,भारत
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