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Sunday, 11 December 2011

DEATH AND SUPERMAN

       मैं माफी चाहता हूँ कि इन दिनों कुछ व्यस्त रहा . सो आपसे मुलाकात नहीं कर सका . THE GREAT WAIT OF SUPERMAN ..पुस्तक की POST कुछेक दिनों बाद आरंभ कर दूंगा ..पर आज आपसे कुछ ओर कहना चाहता हूँ .
        मृत्यु इस धरती का डरावना सत्य है . मृय्यु से मुक्ति सभी की इच्छा है . इस पर हमारे प्राचीन ऋषियों ने बहुत काम किया है .पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिक भी इस पर बहुत काम कर रहें हैं . लेकिन मृत्यु पर विजय असंभव है . कारण इतना ही है कि यह एक मानसिक बीमारी है ...जो मानव की समझ तक ही सिमित है . अतिमानव मूलतः अपनी आत्मा के अनुभव से जन्म लेगा . अतः उसके लिए शरीर इतनी ही अहमियत रखेगा -जितनी की हमारे लिए कोई पेंट  या पायजामा रखता है . . अब क्या कभी आपने सुना है कि किसी मकान की मृत्यु हो गयी ?
         किसी 'गिलास' की मृत्यु हो गयी ?
         चाय के कप की मृत्यु हो गयी ?
         या घर के दरवाजे की मृत्यु हो गयी ?
          क्यों  नहीं सुना ...? क्यूंकि जिन चीजों के मैं नाम ले रहा हूँ ..वे पहले से ही मानव दिमाग द्वारा मृत मान ली गयी है .इस लिए इनकी मृत्यु पर धरती में न तो कोई विलाप है ..और न ही कोई संवाद है !
          पर महान यह शरीर चूँकि अजर और अमर ''आत्मा'' की पदार्थ रुपी पौशाक है ...इसलिए इस पर संवाद ही संवाद है .पार्थिव शरीर की धड़कन ने धरती पर यह अफवाह फैला दी है कि उसकी मृत्यु क्यों हो रही है ? 
          शरीर की शिकायत वाजिब है ...क्योंकि हमारा शरीर हमारे [ यानि हम आत्मा ] की अजरता और अमरता के साथ लगभग १०० वर्षों तक रहता है . इस कारण यह भी हमारी आत्मा की अमरता के स्वभाव में जीना चाहता है .
          मांग वाजिब है ..परन्तु इसके लिए मानव शरीर को यथा अग्नि , वायु , आकाश , जल और पृथ्वी जैसे पार्थिव तत्वों का अतिक्रमण करके ''आत्मतत्व'' के पराकाश में प्रवेश करना होगा ...परन्तु अभी तक इसके लिए यह शरीर तैयार नहीं है . यह अभी भी ''नारी शरीर'' में ही प्रवेश करने को २४ घंटें उत्तेजित रहता है .....
                                              -- रविदत्त मोहता , भारत                   

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