मेरे सदगुरु स्वामी अवधेशानंद जी का मुझे एक कालजयी आदेश है कि मैं लगातार लिखता रहूँ ...इसी आदेश की अनुपालना में मैं आज से आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ -जो धरती की नहीं है .हमारे सौरमंडल की भी नहीं है .बल्कि सूदूर और सबसे प्राचीन अंतरिक्ष की छुपी हुई कहानी है ...इसे मैं समय -समय पर क्रमश; आपको सुनाता रहूँगा ...
मैं आपसे यह भी अपेक्षा करता हूँ कि आप धेर्यपूर्वक इसे पढेंगे ही नहीं ..बल्कि मेरे मुख से सुनेंगे भी ..
तो कहानी इस प्रकार है ...
क्या आपको नहीं लगता कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हम किसी की प्रतीक्षा करते हैं? इस तरफ हम ध्यान नहीं देकर संसार की माया में खुद को व्यस्त कर लेते हैं ...कि जिससे वह प्रतीक्षा न करनी पड़े ..जो कभी पूरी नहीं होती.....?
कहने को इस धरती पर हम जिसकी भी प्रतीक्षा करते हैं ..वह पूरी हो जाती है . सुबह की करें तो ..सुबह हो जाती है . रात की करें तो ...रात हो जाती है .धन की करें तो तो थोड़ा ही सही पर मिल जाता है .स्त्री की करें तो ..पत्नी रूपा मिल ही जाती है .यानी ...कहने को हमारी सभी प्रतिक्षाएं पूरी हो जाती है .प्रतीक्षा करने वाली चीज हमारे ''जीवन भिक्षा पात्र ''में डाल दी जाती है ..लेकिन इस सबके बाद भी हमें अँधेरी रातों के सुनसान कमरों में क्यों किसी की प्रतीक्षा रहती है ?
वो कौन है ..जिसको अभी आना बाकि है ..?
वो कौन है ..क्या कोई स्त्री है ?
भाग्य है ...?
धन है ...?
या कोई ईश्वर है ?...तो इसे ही मैं महाप्रतीक्षा कहता हूँ .यह प्रतीक्षा जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव जीवन के बीहड़ शरीर पर दस्तक देती रहती है ...लेकिन मानव चाह कर भी उसकी इस दस्तक को सुन नहीं पता ..और किसी गाँव की सुनसान गली में ..खांसते-खांसते दम तोड़ देता है ..और लोग दोड़कर उसके घर पहुँचते है ..और ले जाकर जला देते है या दफ़न कर देते हैं ... [क्रमश......]
मैं आपसे यह भी अपेक्षा करता हूँ कि आप धेर्यपूर्वक इसे पढेंगे ही नहीं ..बल्कि मेरे मुख से सुनेंगे भी ..
तो कहानी इस प्रकार है ...
क्या आपको नहीं लगता कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हम किसी की प्रतीक्षा करते हैं? इस तरफ हम ध्यान नहीं देकर संसार की माया में खुद को व्यस्त कर लेते हैं ...कि जिससे वह प्रतीक्षा न करनी पड़े ..जो कभी पूरी नहीं होती.....?
कहने को इस धरती पर हम जिसकी भी प्रतीक्षा करते हैं ..वह पूरी हो जाती है . सुबह की करें तो ..सुबह हो जाती है . रात की करें तो ...रात हो जाती है .धन की करें तो तो थोड़ा ही सही पर मिल जाता है .स्त्री की करें तो ..पत्नी रूपा मिल ही जाती है .यानी ...कहने को हमारी सभी प्रतिक्षाएं पूरी हो जाती है .प्रतीक्षा करने वाली चीज हमारे ''जीवन भिक्षा पात्र ''में डाल दी जाती है ..लेकिन इस सबके बाद भी हमें अँधेरी रातों के सुनसान कमरों में क्यों किसी की प्रतीक्षा रहती है ?
वो कौन है ..जिसको अभी आना बाकि है ..?
वो कौन है ..क्या कोई स्त्री है ?
भाग्य है ...?
धन है ...?
या कोई ईश्वर है ?...तो इसे ही मैं महाप्रतीक्षा कहता हूँ .यह प्रतीक्षा जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव जीवन के बीहड़ शरीर पर दस्तक देती रहती है ...लेकिन मानव चाह कर भी उसकी इस दस्तक को सुन नहीं पता ..और किसी गाँव की सुनसान गली में ..खांसते-खांसते दम तोड़ देता है ..और लोग दोड़कर उसके घर पहुँचते है ..और ले जाकर जला देते है या दफ़न कर देते हैं ... [क्रमश......]
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