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Sunday, 9 October 2011

Biography

TODAY, I AM PUBLISHING MY GLOBLY RECOGNISED BIOGRAPHY -'EK AADIMANAV KI AATMKATHA'. THIS BOOK HAS BEEN SELECTED BY 'USA;S RENOWNED-'LIBRARY OF CONGRESS'.MY GREAT GURU DR.AWADESHANAND GIRI JI INNOUGRATED THIS BOOK AND TODAY MY WIFE SMT.VANDANA MOHTA IS SHARING MY VISION WITH ALL OF YOU.                                                                                                                  
                                                                                                                               RAVIDUTT MOHTA










2 comments:

  1. श्रीमान रवि जी इतने ज्ञानी आप कब से हो गए। मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं आपको इस लेख के लिए क्या बोलूं? आप अपनी वास्तविकता पर क्यों नहीं रहते। ये छद्म भेष क्यों? तथाकथित साधु और ज्ञानी बनने की कहां जरूरत पड़ गई।
    आप बात तो भगवान श्रीकृष्ण की कर रहे हैं, पर भगवान श्रीकृष्ण ने जो गीता में उपदेश दिया है उसे स्वयं की ज़िन्दगी में क्यों नहीं अपनाते? भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे ज्यादा कर्म करने पर जोर दिया था वो तो आप कभी करते नहीं। रवि जी मैं आपको पिछले 15 साल से जानता हूं। आप जैसलमेर रहे वहां कुछ काम नहीं किया सिवाय अपने आपको कमरे में बंद करने के और यही आपने जोधपुर में अपने कार्यकाल में किया और मुझे पूरा यकीन है कि आप बीकानेर में भी यही कर रहे होंगे अपने आपको कमरे में बंद करके टेबल पर एक दो किताबें रखी होंगी ताकि कोई यदि आपके कमरे में आ जाए तो आप उन किताबों के पन्ने पलटने लग जाते होंगे ताकि लोग सोचें कि वाह ये तो बड़े ज्ञानी हैं देखो कितनी अच्छी किताबें पढ़ रहे हैं। जबकि हकीकत तो यह है कि आप उस किताब का एक पन्ना कई दिनों तक नहीं बदलते और हां भला बदले भी क्यों जब कुछ पढ़ोगे तभी तो बदलोगे।
    ये साधु का झूठा भेष रखने से कोई साधु या ज्ञानी नहीं हो जाता उसके लिए सबसे पहले खुद को बदलना पड़ता है। आप तो केवल जग दिखाई के साधु और ज्ञानी बने हुए हैं।
    यदि आप भगवान श्रीकृष्ण की बात कर रहे हैं तो आपने भगवान श्रीकृष्ण का कर्म पर क्या कहना है ये भी पढ़ा होगा और यदि भूल गए हैं तो मैं आपको याद दिला देता हूं-
    कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
    मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
    मुझे नहीं लगता कि इस श्लोक का भावार्थ आपको समझाने की जरूरत है। ज्यादा नहीं तो इतना तो आप समझते ही होंगे।
    हां एक बात और बता देता हूं दुनिया में ऐसा कोई फल नहीं है जिसे बिना कर्म किए प्राप्त किया जा सके।
    मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है कि आपको दुनिया को ज्ञान बांटने की जरूरत नहीं है ये दुनिया ज्ञानियों से भरी पड़ी है। आप ये तथाकथित ज्ञान बांट कर दुनिया को गुमराह न करें बेहतर होगा कि आप इसे अपने जीवन में ढाले,ताकि आपका भला हो।
    मुझे नहीं लगता कि आपने भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश पढ़े होंगे यदि ऐसा होता तो आप इतने निट्ठले और निकम्मे नहीं होते। आप जनता के धन पर ऐश नहीं कर रहे होते। आपको पता होना चाहिए कर्म न करना भी एक तरह की चोरी है और ये चोरी तो मैं आपकी पिछले 15 सालों से देख रहा हूं।
    आप ये बार बार मैं छगन मोहता का पोता मैं छगन मोहता का पोता कब तक रटते रहोगे। कुछ खुद का भी वजूद बनाओ। ओह! मैं तो भूल ही गया अकर्मण्य लोगों का भी भला कोई वजूद होता है?
    तो रवि जी मेरा आपसे इतना ही कहना है कि ये तथाकथित साधुवाद और ज्ञानी होने का चोगा उतार फेंक दो और वास्तविकता में रहते हुए कर्म करो निकम्मे और निठ्ठले मत बनो।
    मेरे पास तो इतना ही ज्ञान है बाकी ज्ञानरुपी चोगा तो आपने पहन रखा है आपको ज्यादा पता होगा।
    धन्यवाद।

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