सूर्य का चक्कर लगाती इस धरती पर हम लाखों वर्षों से रह रहे हैं .... दूसरे शब्दों में हम लाखों वर्षों से सूर्य के चारों तरफ प्रदक्षिणा कर रहें हैं ..... इस प्रकार हमारा जन्म गति के वर्तुल प्रकार के परिणामस्वरूप हुआ है . लेकिन जिस सौरमंडल के केंद्रीय ग्रह सूर्य के चारों ओर हमारी धरती घूम रही है -वह सूर्य और हमारी धरती अपनी धुरी पर भी घूम रहें हैं .....इस घूर्णन गति की वजह से ही अन्तरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण का जन्म हुआ है . धरा पर सभी जीव-जंतु घूर्णन गति और वर्तुल गति के कारण ही चल-फिर और रूक पाते हैं . EVOLUTION OF BEING का सिदान्त मेरे मतानुसार इसी कारण इस ग्रह पर है . वर्तुल गति हमें मृत्यु की तरफ ले जाती है .....परन्तु घूर्णन गति हमें पुन; जीवन प्रदान कर देती है . अब मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए हमें वर्तुल गति को त्यागना होगा . वर्तुल गति को त्यागना ही ''अतिमानस'' का पहला कदम है . यानि घूर्णन गति में सूर्य की तरह विस्फोटित होकर भी अपनी धुरी पर बने रहना . यही चेतना हमें सूर्यमुखी रुद्राक्ष बनाकर अजर और अमर कर देगी .यह मेरा अनुभव है . रविदत्त मोहता
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