सुबह -सा ऊजला चेहरा तेरा
रूह का घूंघट
ओढ़े तकता किसे
दीप -सा जलता चेहरा तेरा
आरती का टीका बन सजता किसे
रूह की सेज पर सजा पहरा तेरा
चाँद को तकते -तकते थकता किसे
होंठों की दबिश में दबा सेहरा तेरा
अंगड़ाई आँखों से बहकता किसे
सुबह को खोदते सुनहरे पाँव तेरे
आकाश के ताजे सूर्य उगाते किसे - रविदत्त मोहता
No comments:
Post a Comment