मानव का क्रमिक -विकास लोकतन्त्रों और राजतंत्रों से नहीं होता .यह विशुद्ध रूप से एक आध्यात्मिक घटना होती है .क्रमिक -विकास में महत्वपूर्ण भूमिका धरती के आकाश और ब्रमांड में फैले 'डार्क-मैटर'की होती है .अंतरिक्ष में गति वर्तुल नहीं है -बल्कि 'सर्पिल' है .इसी कारण हिन्दू देवताओं के महादेव शिव के गले में 'सर्प'एक ब्रह्मा के रूप निवास करता है . मैं आज एक 'तथ्य'आप सभी को यह भी बताना चाहता हूँ किश्रीकृष्ण जहाँ चेतना के स्तर पर 'अतिमानव' को सहायता प्रदान कर रहें हैं -वहीँ महादेव-शिव देहिक स्तर पर अतिमानव' का नया शरीर रच रहें हैं .......... - रविदत्त मोहता
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